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    Home»राज्य»मध्यप्रदेश»एमपी फिर बन सकता है टाइगर स्टेट: All India Tiger Estimation 2026 की प्रक्रिया शुरू
    मध्यप्रदेश

    एमपी फिर बन सकता है टाइगर स्टेट: All India Tiger Estimation 2026 की प्रक्रिया शुरू

    News DeskBy News DeskNovember 13, 2025No Comments5 Mins Read
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    भोपाल 

    भारत में बाघों की असली तस्वीर जानने की सबसे बड़ी कवायद एक बार फिर शुरू होने जा रही है। देशभर में अखिल भारतीय बाघ अनुमान 2026 (All India Tiger Estimation 2026) की प्रक्रिया शुरू होने को है। इसमें टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश की भूमिका बेहद अहम रही है, क्योंकि एक बार 1991 में और उसके बाद 2019 और 2022 में ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन में मध्यप्रदेश लगातार दो साल टाइगर स्टेट का तमगा हासिल करने में कामयाब रहा है। इस बार फिर वन विभाग की बड़ी तैयारी है, उम्मीद की जा रही है कि एमपी एक बार फिर टाइगर स्टेट बन सकता है।

    15 नवंबर से प्रदेशभर के फॉरेस्ट एरिया में बाघ एस्टिमेशन का काम शुरू हो जाएगा। कैमरा ट्रैप लगाए जाएंगे, इसके अलावा एविडेंस में मल, पगमार्क, खरोंच के निशान, शिकार के अवशेष जैसे साक्ष्य भी शामिल किए जाते हैं। चार चरणों में पूरी होने वाली एस्टिमेशन की ये प्रक्रिया फरवरी 2026 तक पूरी होगी। इसके बाद डेटा कलेक्ट करके फाइनल रिपोर्ट अप्रेल 2026 तक तैयार हो जाएगी। जो जुलाई 2026 तक जारी होगी।

    टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश की स्थिति कैसी?

    पिछले बाघ अनुमान 2022 (Tiger Estimation 2022) में मध्य प्रदेश में 785 बाघ दर्ज किए गए थे। जो देश के अन्य राज्यों से भी ज्यादा हैं। यानी हर पांच में से एक बाघ एमपी के जंगलों में मौजूद है। इसी के चलते राज्य को लगातार दूसरी बार 2019 और 2022 में टाइगर स्टेट का दर्जा मिला। इस बार फिर सबकी नजर इसी पर है कि क्या एमपी अपनी टॉप पॉजीशन बनाए रखेगा या किसी अन्य राज्य से मुकाबला होगा?

    दूसरी बार पेपरलेस यानी M-STRIPES ऐप से किया जा रहा है एस्टिमेशन

    पिछले ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन में एमपी समेत देशभर के जंगलों में M-STRIPES ऐप के माध्यम से पेपरलेस कार्य किया गया था। इस बार भी वही प्रक्रिया फॉलो की जाएगी। जिम्मेदारों का कहना है कि इस बार ऐप को और अपडेट किया गया है। यूजरफ्रेंडली ऐप से कई परेशानियां हल हुई हैं और मुश्किलें आसान।

    जानें क्या है टाइगर एस्टिमेशन

    अब तक हम जिसे बाघों की गणना कहते आए हैं, असल में आधुनिक भारत में ये टाइगर काउंटिंग नहीं बल्कि, टाइगर एस्टिमेशन है। टाइगर एस्टिमेशन की प्रक्रिया अब पारंपरिक गिनती से कहीं आगे बढ़ चुकी है। यह सिर्फ कैमरे में दिखे बाघों की संख्या नहीं है, बल्कि मध्य प्रदेश समेत देश के पूरे वन क्षेत्र में मौजूद संभावित आबादी का वैज्ञानिक मूल्यांकन है। इसे ऐसे समझें-

    एमपी में 9 टाइगर रिजर्व और कॉरिडोर, टेरिटरीज पर नजर

    राज्य के 9 टाइगर रिजर्व कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, सतपुड़ा, संजय, पन्ना, ओरछा, माधव, भीमगढ़, नौरादेही सभी में गहन निगरानी चलेगी। हर रिजर्व के कोर और बफर जोन में 24 घंटे कैमरे एक्टिव होंगे। पिछली बार की तरह इस बार भी AI बेस्ड कैमरा ट्रैप और जीपीएस डेटा लिंक तकनीक वाले ऐप M-STRIPES से मॉनिटरिंग पहले से कहीं ज्यादा सटीक होगी। वन विभाग के मुताबिक जंगलों से निकल सड़कों पर नजर आ रहे बाघ जहां चुनौती साबित हो सकते हैं, वहीं ये उम्मीद भी दे रहे हैं, कि बाघों की संख्या बढ़ने की संभावना है, एमपी फिर से टाइगर स्टेट बन सकता है।

    संरक्षण की चुनौती- बढ़ती संख्या, घटता आवास

    एक्सपर्ट्स का मानना है कि बाघों की संख्या बढ़ना जितना सुखद है, उतना ही आवास घटने का खतरा भी बढ़ा है। बाघ कॉरिडोर और गांवों की सीमा तक आने लगे हैं। पीसीसीएफ एल. कृष्णमूर्ति कहते हैं कि, 'इससे निपटने के लिए वन विभाग इस बार सह अस्तित्व मॉडल पर जोर दे रहा है। ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है। स्थानीय समुदायों को निगरानी, रिपोर्टिंग और इको टूरिज्म से जोड़ा जा रहा है।'

    अखिल भारतीय टाइगर एस्टिमेशन (AITE) में एमपी की प्राथमिकता क्या?

    -बाघों की सटिक पहचान और वितरण का नक्शा तैयार करना।

    -रिजर्व से बाहर बाघों की उपस्थिति को वैज्ञानिक रूप से दर्ज करना।

    -कोरिडोर नेटवर्क को मजबूत करना ताकि, बाघ सुरक्षित क्षेत्रों में आवागमन कर सकें।

    -वन विभाग के मुताबिक ये अनुमान प्रक्रिया सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समझने की कोशिश है कि बाघ कहां हैं। कहां जा रहे हैं और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए हमें अब आगे और क्या बदलाव करने की आवश्यकता है। क्या हम सही सही मायनों में जंगलों की सुरक्षा कर पा रहे हैं?

    इस तकनीक से क्या फायदा हुआ

    -कागज की गिनती और मानवीय गलती खत्म हुई, अब सब डिजिटल रिकॉर्ड होता है।

    -हर टीम की गश्त मॉनिटर की जा सकती है, कौन कहां गया, कितना एरिया कवर हुआ, कितना बाकी है?

    -डेटा की पारदर्शिता और सटीकता बढ़ी है।

    -बाघों के संरक्षण और सुरक्षा की योजना बनाना आसान हुआ है। क्योंकि अब ठोस वैज्ञानिक डाटा उपलब्ध है।

    मध्य प्रदेश जो टाइगर स्टेट है, ने इस सिस्टम को सबसे जल्दी अपनाया। राज्य के 9 टाइगर रिजर्व और दो अन्य अभयारण्य के रेंजर्स, कर्मचारियों और अधिकारियों को M-STRiPES पर विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। अब हर बाघ गिनती और पेट्रोलिंग इसी एप के जरिए की जा रही है। ये नया प्रयोग पिछले टाइगर एस्टिमेशन के लिए शुरू किया गया था।

    कैसे काम करता है M-STRIPES सिस्टम

    अब बाघ गिनने का तरीका पूरी तरह से डिजिटल हो गया है। फील्ड में जब वनकर्मी या अधिकारी जाते हैं, तो उनके मोबाइल में M-STRIPES ऐप ऑन रहता है। ये एप जीपीएस की मदद से उनका पूरा रास्ता रिकॉर्ड करता है। यानी कौन सी टीम कहां गई, कितना इलाका कवर किया सब कुछ ट्रैक होता है।

    जंगल में अगर कहीं बाघ के पगमार्क, मल, शिकार के अवशेष मिलते हैं तो कर्मचारी तुरंत उसी जगह का फोटो लेकर ऐप में अपलोड कर देते हैं, फोटो के साथ उस जगह का लोकेशन और समय अपने आप एप में सेव हो जाता है।

    दिन के अंत में पूरा डेटा ऑनलाइन सर्वर पर चला जाता है, जहां विशेषज्ञ उसे जांचते हैं, कहां ज्यादा मूवमेंट मिली, किस इलाके में बाघों की मौजूदगी मजबूत है और कहां निगरानी बढ़ाने की जरूरत है।

    इस तरह अब कागज, फॉर्म या मैनुअल गिनती की जगह पूरा सिस्टम मोबाइल और जीपीएस पर चलेगा। जिससे न केवल आंकड़े सटिक होंगे, बल्कि मानवीय गलती की गुंजाइश भी लगभग खत्म हो जाएगी।

     

     

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